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एमिल जोला

जन्म : 2 अप्रैल, 1840, पेरिस।

मृत्यु : 29 सितम्बर 1902, पेरिस।

झोला फ्रांस आ बसे इतालवी पिता और फ्रांसीसी माँ की सन्तान था। झोला के बचपन और कैशोर्य का अधिकांश समय दक्षिणी फ्रांस में एक्स-अं-प्रोवेंस में बीता, जहाँ उसके सिविल इंजीनियर पिता म्‍युनिसिपल वाटर सिस्टम के निर्माण के काम में लगे हुए थे। पेरिस में अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी कर लेने के बाद झोला दो प्रयासों के बाद भी बेकेलोरिएत परीक्षा में उत्तीर्ण न हो सका। नतीजतन उच्च शिक्षा के रास्ते बन्द हो गये और झोला को रोजगार की तलाश में जुट जाना पड़ा। अगले दो वर्ष ज्यादातर बेरोजगारी और भयंकर गरीबी में कटे। अन्ततोगत्वा 1862 में एक प्रकाशन संस्थान में उसे क्लर्क की नौकरी मिली।

ज़ोला ने विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं-में समसामयिक विषयों पर जब लिखना शुरू किया तो उसका उद्देश्य साहित्य की दुनिया में पहचान बनाने के साथ ही कुछ अतिरिक्त कमाई करके जीना सुगम बनाना भी था। वर्ष 1866 तक झोला एक आलोचक, लेखक और पत्रकार के रूप में इतना स्थापित हो चुका था कि पूरी तरह कलम के बूते ही अपनी आजीविका कमा सके। प्रकाशन संस्थान की नौकरी छोड़कर अब वह एक पूर्णकालिक लेखक और फ्री-लांस पत्रकार बन गया।

झोला न तो मजदूर आन्दोलन का सिद्धान्तकार था, न ही कोई मजदूर नेता, लेकिन ‘जर्मिनल’ (उम्मीद है, आएगा वह दिन) उपन्यास में स्वतः सफूर्तता से संगठन की मंजिल तक हड़ताल के विकास का और फिर उसकी पराजय का विस्तृत प्रामाणिक विवरण प्रस्तुत करते हुए उसने आम हड़ताली मजदूरों के मनोविज्ञान का उनकी चेतना की, गतिकी का जो चित्रण किया है उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि इस मुकाम तक आते-आते उसके कृतित्व में आनुवांशिकता और जैविक नियतत्ववाद का स्थान मूल चालक शक्ति के रूप में नहीं रह गया था। उनका स्थान सामाजिक मनुष्य के बारे में ऐतिहासिक दृष्टिकोण ने ले लिया था। सर्वहारा वर्ग को झोला अब एक ऐसे सामाजिक समूह के रूप में देख रहा था जो अमानवीकृत कर देंने वाली सामाजिक परिस्थितियों की उपज था और जो उन परिस्थितियों का प्रतिरोध करने में, उनके विरुद्ध विद्रोह करने में सक्षम था।

उम्मीद है आयेगा वह दिन

एमिल जोला

मूल्य: Rs. 450

उपन्यास एक तरह से उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध के यूरोपीय मजदूर आन्दोलन का एक लघु प्रतिरूप प्रस्तुत करता है।   आगे...

 

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